शनिवार, 23 नवंबर 2013

पन्ने ज़िन्दगी के


कुछ पन्ने ज़िन्दगी के
इतने अच्छे हैं
कि
बार बार पढ़ने  का मन करता है

कुछ पन्ने  ज़िन्दगी के
इतने बुरे हैं
कि
पढ़ने  का मन तो करता ही नहीं
बल्कि
फाड़ देने को जी करता हैं

कुछ पन्ने  ज़िन्दगी के ऐसे
कि
लिखे ही न जा सके
जब भी नज़र पड़े
हमेशा कोरे ही दीखते हैं

कुछ पन्ने ज़िन्दगी के ऐसे
कि
कभी लगता है
कि क्या
वो हमारी ही ज़िन्दगी  के पन्ने हैं
जाने पहचाने होते हुए भी
हमेशा अनजाने से ही लगते हैं

कुछ अच्छे कुछ बुरे
कुछ भरे कुछ कोरे
कुछ जाने कुछ अनजाने
ऐसे ही पन्नों
से
ज़िन्दगी की किताब
पूरी हो जाती है
और
रह जाता है
बहुत कुछ
अनलिखा अनपढ़ा
अनसुना अनगढ़ा


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